पितृ पक्ष कैलेंडर 2019

 



13 सितंबर 2019 पूर्णिमा श्राद्ध
14 सितंबर 2019  प्रतिपदा श्राद्ध
15 सितंबर 2019  द्वितीय श्राद्ध 
17  सितंबर  2019 तृतिया श्राद्ध 
18  सितंबर 2019 चतुर्थी श्राद्ध
 19 सितंबर 2019  पंचमी श्राद्ध
 20  सितंबर 2019  षष्ठी श्राद्ध
 21 सितंबर 2019 सप्तमी श्राद्ध
 22 सितंबर  2019 अष्टमी श्राद्ध
 23 सितंबर 2019 नवमी श्राद्ध
 24 सितंबर 2019  दशमी श्राद्ध
 25 सितंबर 2019  एकादशी +द्वादशी श्राद्ध
 26 सितंबर 2019  त्रयोदशी श्राद्ध, 
27 सितंबर 2019 चतुर्दशी श्राद्ध 
 28 सितंबर  2019  सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या
‬ हमारे पूर्वज हमारे अस्तित्व की नींव है,
उनके कृतज्ञता का सम्मान
 करने का एक पल भी न छूटे.. 
अनंत कोटि कोटि नमन पूर्वजों का आशीर्वाद 
सबको प्राप्त हो।


श्राद्ध किसे कहते हैं?
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श्रद्धार्थमिंद श्राद्धम्।
 श्रद्धया इदं श्राद्धम्।


पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है उसे
  श्राद्ध कहते हैं।


क्या करें?
शास्त्रों में मनुष्य के लिए देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण उतारना आवश्यक है।अतः पितृऋण 
से मुक्ति हेतु श्राद्ध करके हम मुक्ति को प्राप्त होता सकते है
  


पितृपक्ष में श्राद्ध कब करें?
पितृपक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि आये, उस तिथि पर मुख्य रूप से पार्वण श्राद्ध करने का विधान है। सोलह दिनों तक पितरों को तर्पण करें और विशेष तिथि को श्राद्ध करें (जिस दिन उनका स्वर्गवास हुआ हो)। यदि किसी को पितरों के स्वर्गवास का दिन ज्ञात न हो तो वे अमावस्या को श्राद्ध करें। इस श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहते हैं। पार्वण श्राद्ध का समय-
पूर्वाह्णे दैविकं श्राद्धमपराह्णेतु पार्वणम्।
एकोदिष्टं तु मध्याह्ने प्रातर्वृद्धि- निमित्तकम्॥
अत: पार्वण श्राद्ध अपराह्ण में (अर्थात् लगभग 2pm) बजे करना चाहिए।


श्राद्ध का महत्त्व:-
महर्षि जाबालि कहते हैं-
पुत्रानायुस्तथाऽऽरोग्यमैश्वर्यमतुलं तथा।
प्राप्नोति पञ्चेमान् कृत्वा श्राद्धं कामांश्च पुष्कलान्॥


अर्थात् पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु,आरोग्य,अतुल एैश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की
      प्राप्ति होती है।


श्राद्ध न करने पर:-
महर्षि काण्वायिनि कहते हैं-
वृश्चिके समनुप्राप्ते पितरो दैवतै: सह।
नि:श्वस्य प्रतिगच्छन्ति शापं दत्वाबुदारुणम्॥


अर्थात् सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करते तक 
यदि श्राद्ध न किया जाए तो पितर गृहस्थ को दारुण शाप देकर 
   पितृलोक लौट जाते है।
   


पूर्वजों के अतृप्त होने के कारण होने वाले कष्ट विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, मंदबुद्धि या विकलांग संतान होना, केवल कन्या ही पैदा होना, पितृदोष के कारण सन्तान  
   में समस्या आदि।


 उपर्युक्त पितृपक्ष संदेश निर्णय सिन्धु व धर्म सिन्धु के आधार पर वैदिक 
द्वारा शोधित है।
  सभी का मंगल हो।